biography of suryakant tripathi nirala in hindi > सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी साहित्य के उन महान कवियों में से एक हैं, जो अपनी बेहतरीन कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। निराला जी हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं और उनका व्यक्तित्व हर क्षेत्र में “निराला” था। उनका नाम और उनके गुणों में अद्भुत समानता थी, जिसे समय-समय पर उनके कार्यों से प्रमाणित किया गया है। अगर आप सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक पढ़ते रहें। यहां हम आपको निराला जी से जुड़ी सारी जानकारी हिंदी में प्रदान करेंगे
suryakant tripathi nirala की शिक्षा
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मौज दल हाई स्कूल से शुरू की थी, लेकिन उन्हें उस शिक्षा पद्धति में खास रुचि नहीं थी। इसके बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई बंगाली माध्यम से जारी रखी। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह भागलपुर में रहकर संस्कृत और अंग्रेजी का अध्ययन करने लगे। इसके बाद वह लखनऊ गए और फिर घर लौटकर
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कोलकाता में रहने लगे। शुरुआती दिनों में उन्हें “रामचरितमानस” बहुत प्रिय था। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को कई भाषाओं का गहरा ज्ञान था। वे अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला और हिंदी जैसी भाषाओं में काफी निपुण थे। साथ ही वे श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान विचारकों से भी प्रभावित थे
suryakant tripathi nirala का विवाह
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का विवाह उनकी युवावस्था में मनोरमा देवी से हुआ था, जो रायबरेली जिले की निवासी थीं और एक प्रतिष्ठित व्यापारी की बेटी थीं। मनोरमा देवी को संगीत का गहरा ज्ञान था, और उन्होंने निराला जी को भी संगीत की शिक्षा दी। इसके बाद निराला जी ने हिंदी में कविता लिखना शुरू किया, बंगाल के प्रभाव के कारण उनकी रचनाओं में अनूठी शैली देखने को मिली। दुर्भाग्यवश, युवावस्था में ही उनकी पत्नी का निधन हो गया, और इसके कुछ समय बाद उनकी बेटी की भी मृत्यु हो गई। इन व्यक्तिगत त्रासदियों ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला
Suryakant Tripathi Nirala Ka Jivan Parichay पारिवारिक विपत्तियां
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के जीवन में कठिनाइयाँ बहुत ही कम उम्र से शुरू हो गई थीं। मात्र 17 साल की उम्र से ही उन्हें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा। सामाजिक, साहित्यिक, और व्यक्तिगत संघर्षों से वे लगातार जूझते रहे, लेकिन उन्होंने कभी अपने लक्ष्य से विचलित नहीं हुए। जब वे केवल तीन साल के थे, उनकी माता का निधन हो गया था, और उनके पिता का भी कुछ समय बाद निधन हो गया। मात्र 20 साल की उम्र में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। पहले विश्व युद्ध
के बाद फैली महामारी में उनकी पत्नी और चाचा दोनों की मृत्यु हो गई, जिससे वे अत्यधिक टूट गए थे। इस त्रासदी के बाद निराला जी मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत अकेले हो गए थे और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में कई बार असफल भी हुए। कुछ समय बाद उन्होंने राजा के यहां नौकरी शुरू की, लेकिन बाद में वह नौकरी छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने रामकृष्ण मिशन की पत्रिका “समन्वय” के संपादक के रूप में काम करना शुरू किया
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का कार्य क्षेत्र
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी पहली नियुक्ति सरयूपार राज्य में की थी और उन्होंने 1918 से 1922 तक यहां नौकरी की। इसके बाद वे संपादन, अनुवाद और स्वतंत्र लेखन में पूरी तरह समर्पित हो गए। इस दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्य किए। 1922 से 1932 के बीच कोलकाता में वे काफी प्रसिद्ध हुए और पत्रिका “समन्वय” का संपादन भी किया।
1923 में उन्होंने “मधुबाला” के संपादक मंडल में भी काम किया। इसके बाद लखनऊ में उन्होंने “गंगा पुस्तक माला” और मासिक पत्रिका “सुधा” के साथ 1934 के मध्य तक काम किया। कुछ समय लखनऊ में बिताने के बाद, 1940 से 1942 तक वे इलाहाबाद में रहे और स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य में लगे रहे, जिसे उन्होंने अपनी मृत्यु तक जारी रखा
suryakant tripathi nirala की रचनाएँ
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने सन 1920 के आसपास अपना लेखन कार्य शुरू किया था। उनकी सबसे पहली रचना एक गीत था, जो “जन्मभूमि” पर लिखा गया था। सन 1916 में उन्होंने “जूही की कली” नामक कविता लिखी, जो काफी लंबे समय तक लोकप्रिय रही। यह कविता सन 1922 में प्रकाशित हुई थी और इसे हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के काव्य संग्रहों में प्रमुख रचनाएँ शामिल हैं, जैसे “अनामिका”, “परिमल”, “गीतिका”, “तुलसीदास”, “गोकुल”, “निरुपमा”, “कुकुरमुत्ता”, “अर्चना”, “आराधना”, और “गीत गुंज”। इनके अलावा, उनकी प्रमुख कविताओं में “अकली” और “अपराध” भी काफी प्रसिद्ध हैं।
निराला जी के उपन्यासों में “अप्सरा”, “कुल्ली भाट”, “निरुपमा”, “बिल्लेसुर बकरिहा”, “इंदुलेखा”, “सखी”, और “शुक्ला की बीवी” उल्लेखनीय हैं। उनके कहानी संग्रहों में “देवी”, “चमारी”, और “चतुरी चमार” शामिल हैं। इन सभी रचनाओं ने हिंदी साहित्य में उनका अमूल्य योगदान सुनिश्चित किया
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